Download Our App

UDYAM-CG-10-0006700

मितानीन की लाफरवाही से एक नवजात शिशु की गई जान, पढ़िएं क्या है मामला


वनांचल व ग्रामीण क्षेत्र में चलती है मितानिनों की मनमानी, त्रस्त है ग्रामीण
मितानीन सोनकुंवर समय-समय पर पहुंचती पीड़ित के पास तो नवजात की बचाई जा सकती थी जान
ग्रामीण महिला मितानीन को हटाने हुए लामबंद
कोरबा। जहां एक ओर शासन वनांचल व दूरस्थ क्षेत्रों के लिए 112 व 108 का सुविधा मुहैया कराई है जिससें की लोगो को तुरंत उनकी समस्याओं का निराकरण कराया जा सकें। मगर जमीनी हकीकत देखीं जाएं तो नजारा ही कुछ और रहता है।
        हम बात कर रहे है जिले के दुरस्थ वनांचल क्षेत्र लेमरू के ग्रामीण भी इन्हीं कुछ समस्याओं से जूझ रहे है। जिले के लेमरू वनांचल क्षेत्र में मितानीन की कार्य सही तरीके ना करने का आरोप ग्रामीण महिलाओं ने लगाए है। लेमरू से करीब एक किलोमीटर दूर कांटाद्वारी में महिलाएं ने बताएं की कांटाद्वारी की मितानीन सोनकुंवर गर्भवती महिला के पास इलाज के लिए प्रत्येक माह पहुंचती ही नहीं जिसकी कीमत एक गर्भवती महिला को चुकाना पड़ा।
आपको बता दे कि लेमरू ग्राम पंचायत अंतर्गत कांटाद्वारी गांव में गर्भवती महिला संगीता का आठ माह का बच्चा खत्म हो गया। वजह यहीं थी कि उक्त महिला के पास मितानीन सोनकुंवर पहुंचीं ही नहीं। आपको यह भी बता दे कि गर्भवती महिला के परिजन चार पांच बार मितानीन सोनकुंवर के पास गए लेकिन वह पीड़ित के घर आई ही नहीं आखिरकार पीड़ित के परिजन खुद ही लेमरू के स्वास्थ्य केंद्र गर्भवती संगीता को लेकर पहुंचें तब तक काफी देर हो चुकी थी डॉक्टरों ने गर्भवती महिला संगीता की स्थिति नाजूक देखते हुए कोरबा रेफर कर दिए। जहां गर्भवती महिला संगीता को कोरबा जैसे ही लाया डॉक्टरों ने बच्चें को मृत घोषित कर दियें। सोचनीय पहलू यह है कि अगर समय-समय पर मितानीन उक्त गर्भवती महिला के पास देंखरेंख करनी जाती तो शायद एक नवजात शिशु की जान बचाई जा सकती व पीड़ित गर्भवती महिला संगीता को उसका बच्चा भी स्वास्थ मिल जाता।
         आपको बता दे कि मितानीन की यह जिम्मेदारी बनती है की प्रत्येक माह गर्भवती महिलाओं की उपचार के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाना व दवाई भी समय पर मुहैया कराना वहीं दुसरी तरफ इन गर्भवती महिलाओं के प्रत्येक माह प्रशासन द्वारा एक फारमेट भी दिया जाता है जिसे भर कर अपने-अपने एमटी या सुपर वाइजर के पास जमा कराना होता है, इसके बाद मितानिनों को एक गर्भवती के पीछे 9 माह के बाद मात्र दो सौ रूपएं मिलता है वहीं 22 सौ रूपएं मानदेय स्वरूप माह में एक बार दिया जाता भी है। लेकिन इसके बावजूद भी मितानीन सोनकुंवर अपने कार्य के प्रति सजग ना रहते हुए मनमानी तरीके से कार्य कर रहीं है। आपको यह भी बताना लाजिमी होगा कि गत दिनों पूर्व कांटाद्वारी में एमटी जलशी यादव ने पीड़ित के परिजनों व गांव के अन्य लोगो की बैठक भी बुलाई। मगर मितानीन सोनकुंवर एमटी जलशा यादव की बुलाए मीटिंग में भी उपस्थित नहीं हुई। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि मितानीन सोनकुंवर अपने दायित्व व कर्तव्यों के पीछे कितनी गंभीर है। भोले-भाले गांव की महिलाएं अब नई मितानीन की तलाश में है जो मरीजों के प्रति गंभीर व कार्य के प्रति सजग रहें। अब देखना यह है कि प्रशासन मितानीन के प्रति क्या कार्रवाई करता है।

Leave a Comment

READ MORE

[democracy id="1"]
error: Content is protected !!