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आलोचनाओं को आत्मसात करने का प्रयास करते हुए उस पर शोध करना चाहिए न कि विरोध ?- विनोद नेताम

बालोद। बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि जो समाज अपनी आलोचनाओं से डरकर समाजिक मर्यादाओं के बिल में घुंसते हुए समाजिक ढोंग का दिखावा करने से परहेज नहीं करता होशो हवाह समाज कभी भी उन्नति, तरक्की और विकास की सपना देखने का अधिकार नहीं रख सकता है।
            इस तरह की सोंच ज्यादातर समाजिक बुद्धजीवियों के मुखारविंदो से आम जनता को सुनने को मिलता है, लेकिन जो समाज किसी भी तरह के समाजिक आलोचनाओं को सामाजिक सुधारों हेतू इन्हें स्वीकार करते हुए आत्मसात करने का काम करता है! वह समाज निश्चित तौर पर आगे चलकर समाजिक दायित्वों के क्षेत्र में परचम लहराने का काम करता है! बीते कुछ दिनों पहले आदीवासी सेवा समिति पेरपार परिक्षेत्र तहसील गुरूर जिला बालोद छत्तीसगढ़ में वार्षिक बैठक का आयोजन किया गया था। ज्ञात हो कि पेरपार परिक्षेत्र अंतर्गत आदिवासी गोंड़ समाज के बारह गांव आते हैं। इन सभी बारह गांव के आदिवासी बंधु इस वार्षिक अधिवेशन में उपस्थिति दर्ज कराने हेतु आएं हुए थे। आने वाले लोगों में महिलाएं बच्चे और पुरुष बराबर मात्रा में शामिल हुए थे। दिनभर बारह गांव से आये हुए आदिवासी समाज से जुड़े हुए लोगो के द्वारा समाजिक सभ्यता संस्कृति अनुसार सामाजिक कार्यक्रम संपन्न किया गया। इस दौरान अतिथि सम्मान संस्कृति कार्यक्रम कलश यात्रा सामाजिक पदाधिकारियों का मान-सम्मान और अन्य समाजिक गतिविधियों का रश्म निभाई गई, लेकिन रात्रि कालीन समय में बैठक के दरम्यिान बारह गांव से जुड़े हुए मामलों पर चर्चा पर व आय व्यय और तमाम तरह की समाजिक विषयों पर चर्चा तय अनुसार होना था, इस बीच कई सामाजिक पदाधिकारी आपस में भिड़ते हुए नजर आए।
कारण सभी को पता है लेकिन एक पत्रकार जो उसी समाज से ताल्लुक रखने वाला के द्वारा इस खबर को उजागर कर दिया। कुछ दिन बाद उक्त पत्रकार के पास पेरपार परिक्षेत्र तहसील गुरूर जिला बालोद छत्तीसगढ़ से पत्र आया कि मामले में पत्रकार को सफाई हेतु पेश होना है उस पेशगी में पत्रकार को पेरपार परिक्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत कंवर के चंडी मंदिर में बैठक थी। जहां पर पत्रकार एक अकेला आदिवासी समाज में व्याप्त सामाजिक बुराई के विरोध में खड़ा रहा और बारह गांव के आदिवासी समाज पत्रकार व आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले को शराब के मामले में समाज को बदनाम करने हेतू कोसता रहा गया। पत्रकार व आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाला तथा देश का चौथा स्तंभ कहलाने वाला ने अपने बेवाक तरीके से कहा कि क्या आदिवासी समाज आज के इस अमृतकाल के दौर में अपने बच्चों को शराब से ऊर्जावान बनाए रखने हेतू संकल्पित होकर बैठक आयोजन करने की सामाजिक उपलब्धि को सफलता मान कर चल रही है। यदि ऐसा है तो आदिवासी समाज अभी से सचेत हो जाएं शराब शहद नहीं जहर है और जो इसे खायेगा या फिर पियेगा उसका अंत निकट है चाहे वह कोई भी हो। पत्रकार व आदिवासी समाज का युवा व समाज को नई दिशा दिखाते हुए कहा कि चाहे वह किसी भी व्यक्ति संगठन समुदाय या संस्था के लिए हो यदि वह गलत नहीं है तो किसी के लिए नुकसानदायक भी नहीं है, इसलिए आलोचनाओं को आत्मसात करने का प्रयास करते हुए उस पर शोध करना चाहिए न कि विरोध ?

 

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