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विधानसभा चुनाव, खामोश मतदाता, और प्रचार में चमक नहीं

कोरबा। शहर की चारों विधानसभा में मतदाता खामोश नजर आ रहे हैं, वहीं प्रचार में भी चमक भी दिखाई नहीं दे रही है। कुछ बस्तियो में दोनों दलों के झंडे जरूर दिख रहे हैं, पर वैसी चमक नही दिख रही है। मतदाताओं के खामोश रहने का अर्थ जरूर किसी बड़े परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है, कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होने वाला मतदाताओं से चर्चा के दौरान एक बात जरूर उभरकर आई है कि जनता मजबूत प्रतिनिधि देखना चाहती है। कुछ मतदाता भले कुछ न बोलें, लेकिन बातचीत से यही अर्थ निकलता है कि चुनाव पैसे का खेल है और पैसे का जोर चलेगा। विशेषकर स्लम एरिया में, वैसे पैसा पॉश कालोनियों में रहने वाले भी लेते है, भले वोट की लाइन में खड़ा होना अपनी तोहीनी समझते है, लेकिन पैसा जरूर लेते है। कुछ लोगों ने विकास पर खुलकर चर्चा की। कोरबा जैसे जिले में जहां पैसे की कमी नहीं, वहां विकास में कमी क्यों रह गई। ट्रेन की समस्या के लिए केंद्र सरकार पर भड़ास निकालते हैं, तो सड़क पर राज्य सरकार पर, जिनका ट्रेन से वास्ता हमेशा रहता है, वह वर्ग केंद्र सरकार पर अपनी नाराजगी बयां कर रहा है। ऐसे लोगों की संख्या कोरबा शहर में ज्यादा है। यह ऐसा वर्ग है, जो खामोश मतदाता में नही आते और खुलकर चर्चा करते है। सड़क के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधि पर इसलिए यह कह पाना कठिन होगा कि इनका मुड किस ओर है। कोरबा शहर में स्लम बस्तियों ज्यादा है और वहीं का वोट निर्णायक रहता है। क्योंकि खुलकर चर्चा करने वाले वोट की लाइन में खड़े होंगे या नही क्योंकि स्लम बस्तियों के लोग भी उसी लाइन में खड़े रहेंगे और खुलकर चर्चा करने वाले स्लम बस्ती वालों को ही हर मामले में दोषी ठहराते हैं। लिहाजा स्लम बस्तियों का वोट ही निर्णायक रहेगा। इस बार भी अब ये निर्भर करता है कि इन पर किसकी कैसे पकड़ है।

कम्युनिष्ट भी मैदान में
चुनाव मैदान में कम्युनिष्ट पार्टी भी मैदान में है। इनकी मजदूरों में पकड़ मजबूत बनी हुई है। निजीकरण के इस दौर में श्रमिक संघों को कुचला जा रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में इनके वोटर बस्ती के निवासी हैं। जिनके लिए कम्युनिष्ट हमेशा लड़ते रहते है। कभी नवरंगलाल भी चुनाव लडा करते थे। चुनाव भले न जीते हों, लेकिन दबदबा किसी विधायक से कम न था। वर्तमान में कोरबा से सुनील सिंह भाजपा से मैदान में हैं। बालको के निवासी होने के कारण और वही पढ़ें लिखे होने की वजह से वो दमदारी से मैदान में है। ऐसे में कर्मचारियों के बीच उनकी एक अलग छवि नजर आ रही है।

आप भी दिखा रही दम
चुनाव के मैदान में इस बार आम आदमी पार्टी भी दमदारी दिखा रही है। उसका प्रभाव कुछ क्षेत्र में जरूर है। आप पार्टी से विशाल केलकर को मैदान में उतारा गया है। ये कोई नया नाम नही है। केलकर पिछले चुनाव में ये निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके है। छवि के साफ सुथरे होने कारण इनकी चर्चा लोगो की जुबां पर है। दिल्ली और पंजाब में इनकी सरकार होने का फायदा अगर इन्हें मिला तो ये पिछली बार से अधिक वोट ला सकते हैं।

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